Saturday, January 7, 2012

!!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०२!!


!!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०२!!

!!ॐ नमो भगवते!!

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घृतराष्ट्र उवाच

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समावेता युयुत्सवः!

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय!!१!!

घृतराष्ट्र बोले, हे सञ्जय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में इकट्ठे हुए युद्ध की इच्छा रखने वाले मेरे और पांडुके पुत्रों ने क्या किया?!!१!!  

उपरोक्त श्लोक 'अर्जुन विषद योग' (प्रथम अध्याय: श्रीमभ्दगवग्दीता) का है.

 "श्रीमभ्दगवग्दीता: मेरी समझ में" नामक लिखी जाने वाली इस कृति के कर्ता स्वमं भगवान शीकृष्ण हैं.

मुझ विमूढ़ में ऐसी कोई प्रज्ञा या सामर्थ्य नहीं की 'श्रीमभ्दगवग्दीता' के एक श्लोक को भी समझ सकूँ.

परमपुरुष, परमात्मा भगवन श्रीकृष्ण ही अनुप्रेरित करते है, सब कुछ अनुकूल बनाते है,

और व्यक्त होने की कृपा करते है मुझ तुच्छ की लेखनी के माध्यम से.

इस कृति में मैं 'श्रीगीता' के मूल श्लोकों एवं टीकाओं को

गीताप्रेस, गोरखपुर के द्वारा प्रकाशित "पद्मपुराणान्तर्गत प्रत्येक  अध्याय के महामत्य्मसहितः श्रीमभ्दगवग्दीताः १६" से ले-लेकर आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ.

मैं गीताप्रेस, गोरखपुर(प्रकाशक एवं मुद्रक) का आभारी हूँ.

उनका वेबसाइट है www.gitapress.org

  

विषाद मानवता है, विषादमुक्त देवता है, विषादहीन पशुता है.

अर्जुन विषादयुक्त हो जाते हैं, श्रीकृष्ण सर्वथा विषादमुक्त हैं,

और  युद्धक्षॅत्र में आये शेष सारे कौरवों, पांडवों तथा उनकी सेनाओ के मनों में कोई विषाद नहीं!

यह एक स्पस्ट स्थिति है, मानसिक अवस्था है- इस वक्त युद्धभूमि में उपस्थित सभी मनुष्यों की.

पशुता, मानवता, देवता – तीनों गुण मनुष्य शारीरधारी जीव में ही संभव है और  गुणानुकूल विचार, भाव तथा कर्मादि होते हैं.

 

'घृतराष्ट्र' यह शब्द देखिये.

पुराणों की कथाओं में इनके रचियता श्रीवेदव्यासजी ने मुख्य-मुख्य पात्रों के नाम बङे सार्थक दिए हैं.

मैं यह नहीं समझता की सारे नाम काल्पनिक है, लेकिन इश्वरकृपा से सार्थक अवश्य है.  

'घृतराष्ट्र'- क्या करेंगे आप इस शब्द का अर्थ- यही न कि दोषों, बुराइयों, गुस्ताखियों,

अज्ञानयुक्त कर्मो और व्यवस्थाओं वाला राष्ट्र!  

राजतान्त्रिक व्यवस्था में जैसा राजा होगा, वैसी ही प्रजा होगी, राष्ट्र होगा, सारी व्यवस्थाएं होगीं.

प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में जैसी प्रजा होगी, वैसा ही राजा होगा, सारी व्यवस्थाएं होगीं.

हमें इस बात को बार-बार ध्यान में रखना होगा कि वह कल जिसमे श्रीगीता का अवतरण हुआ,

उस काल में राजतान्त्रिक व्यवस्था थी,

और आज हमलोग प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में जीने वाले, के सहभागी मनुष्य हैं.

 

"घृतराष्ट्र बोले,

हे सञ्जय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में इकट्ठे हुए युद्ध की इच्छा रखने वाले मेरे और पांडुके पुत्रों ने क्या किया?"

घृतराष्ट्र अंधे हैं, सूरदास भी अंधे हैं.

घृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण नहीं दिखाई पङते, नहीं दर्शन होता उन्हें श्रीकृष्ण का जब वो आते हैं,

सम्मुख होते हैं,

बोलते हैं,

शांति का प्रस्ताव रखते हैं,

मंगाते हैं वो राज्य, कपट के द्वारा जीता गया राज्य,

उनके पुत्र दूर्जोधन के द्वारा जूए में जीता गया वो राज्य,

वापस मांगते हैं

क्योंकि अब पांडवों की वनवास की अवधि खत्म हो गयी,

पांडव अब वापस आ गए है, प्रकट हो गए हैं अज्ञातवास से भी

जो १४ वर्षों के वनवास के अंतिम एक वर्ष का था.

श्रीकृष्ण घृतराष्ट्र की सभा में आते हैं उनका शांतिदूत बन कर!

लेकिन घृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण नहीं दिखाई पङते,

नहीं सुनाई पङते कृष्ण के शब्द,

नहीं समझ में आता हैं श्रीकृष्ण का, पांडवों का शांति-प्रस्ताव!!!!

 

सूरदासजी भी अंधे है-

लेकिन वे श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर तान सुन पाते हैं,

डूब पाते हैं,

आत्मविभोर हो पाते हैं,

सब कुछ : अपना ज्ञान, अज्ञान, अहंकार –

सबकुछ समर्पित कर पाते हैं श्रीकृष्ण के चरणों में,

परमगति, परममति को प्राप्त हो पाते हैं!

 अपने परमप्रिय प्रभु को स्पर्श कर पाते हैं,

दर्शन कर पाते हैं

श्रीकृष्ण के. श्रीकृष्ण के सारे अध्यात्मिक,

वैज्ञानिक,

दार्शनिक,

चमत्कारिक,

नैतिक,

बौद्धिक और मानसिक व्यक्तित्वों,

कलाओं के साक्षात दर्शन का आनंद ले पाते है-

सदैव, अपने सम्पूर्ण जीवन काल में!!!

 

क्या फर्क है- घृतराष्ट्र और सूरदासजी की अन्धता में?   

 

क्रमश............ !!श्रीमभ्दगवग्दीता, अध्याय:०१/श्लोक:०१/पोस्ट:०३!! में

 

!!ॐ नमो भगवते!!

 - अमृताकाशी

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*रश्मिप्रीत* http://sribhagwatgeeta.blogspot.com   http://mysteriousmystical.blogspot.com
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